1991 में मनमोहन सिंह का ऐतिहासिक बजट और बदल गई भारत की तकदीर

1991 में ग्लोबलाइज़ेशन और उदारीकरण की शुरुआत
1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव की सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री रहे। उस दौरान नरसिम्हा राव के सलाहकार हुआ करते थे पीसी अलेक्ज़ेंडर, जिन्होंने सलाह दी कि मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय दिया जाए। बतौर वित्त मंत्री उन्होंने देश के लिए ऐसी नीतियाँ बनाई, जिनसे उदारीकरण और वैश्वीकरण के दरवाजे खुले और विदेशी निवेश को आमंत्रण मिला।
देश को सबसे बड़े आर्थिक संकट से निकाला
मनमोहन सिंह ने जब वित्त मंत्रालय संभाला तब देश की अर्थव्यवस्था ख़राब दौर से संघर्ष कर रही थी। जून 1991 में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने और जुलाई में ही भारतीय रुपया धड़ाम से गिर गया। मनमोहन सिंह ने बतौर वित्त मंत्री इसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए नरसिम्हा राव को अपना इस्तीफा सौंप दिया, लेकिन नरसिम्हा राव ने इसे स्वीकार नहीं किया। ऐसे में देश को ख़राब आर्थिक दौर से निकालने की ज़िम्मेदारी मनमोहन सिंह के कंधों पर आ गई। मुश्किल भरे हालातों के बीच डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने पहले बजट भाषण में ऐतिहासिक ऐलान किए, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर ही बदल दी। इनमें मुख्य रूप से:
- आयात शुल्क को 300% से घटाकर 50% कर दिया गया
- सीमा शुल्क 220% से घटाकर 150% किया गया
- आयात के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को आसान बनाया गया
- निजी कंपनियों को आयात के लिए स्वतंत्रता दी गई
- विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई गई
- बजट में कॉर्पोरेट टैक्स बढ़ाने और TDS की शुरुआत
- म्यूचुअल फंड में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री
बतौर वित्त मंत्री अपने पहले बजट में मनमोहन सिंह की नीतियों की सराहना आलोचकों ने भी की। लेकिन ये इतना आसान भी नहीं था। यह एक ऐसा दौर था जब देश के पास अपना रिजर्व बेहद कम रह गया था, जिससे कुछ ही हफ्तों तक काम चल सकता था। ऐसे दौर में देश दिवालिया भी हो सकता था। इस कठिन समय में मनमोहन सिंह ने बेहद सूझबूझ और रिस्की फैसले लेकर देश को बाहर निकाला। उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए भारतीय सोना गिरवी रख दिया और इससे 60 करोड़ डॉलर की रकम जुटाई।
मनमोहन सिंह के इन फैसलों से तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी किनारा कर लिया था। उन्होंने मनमोहन सिंह से कह दिया था:“अगर चीजें सही नहीं रही तो आप इसके ज़िम्मेदार होंगे और अगर ये नीतियां काम करती हैं तो इसका क्रेडिट हम मिलकर लेंगे।”
मनमोहन सिंह के इन फैसलों का कमाल ऐसा हुआ कि, जो भारतीय अर्थव्यवस्था 1991 में 266 बिलियन डॉलर की थी, वह अगले 30 सालों में 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। इस दौर में लाइसेंस राज खत्म हो गया, लोगों के पास फोन लाइनें पहुँच गईं, केबल टीवी और प्राइवेट बैंकों ने अपने पैर पसारे। देश में सहारा एयरलाइंस और जेट एयरवेज ने फ्लाई सेवा शुरू की।
RTI और मनरेगा ऐतिहासिक कदम
डॉ. मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। मनमोहन ने प्रत्यक्ष रूप से कोई चुनाव नहीं जीता था, इसके बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार चुना। मनमोहन सिंह की छवि ईमानदार और साफ सुथरी थी। बतौर प्रधानमंत्री भी वे देश की अर्थव्यवस्था को धार देने में जुट गए। इसके साथ ही उन्होंने मनरेगा योजना शुरू की। इस योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा किए। इसका प्रभाव हमने कोरोना वायरस के समय में भी देखा। जब लॉकडाउन में उद्योग-धंधे बंद पड़े थे और मज़दूर वर्ग के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया था, तब मनरेगा ही एकमात्र उम्मीद थी। इसके अलावा राइट टू इन्फ़ॉर्मेशन, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, और आधार कार्ड की शुरुआत जैसे कदम उठाए गए।
जब 60 हज़ार करोड़ के कृषि लोन माफ किए
बतौर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम एक उपलब्धि ये भी है कि उन्होंने कृषि संकट से देश को उबारा। कृषि संकट को दूर करने के लिए उन्होंने करीब 60 हज़ार करोड़ के कृषि लोन माफ किए।
“धरती पर कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है। मैं इस सदन को सुझाव देता हूं कि विश्व में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय ऐसे ही विचारों में से एक है।”
1991 में वित्त मंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने बजट भाषण के अंत में ये लाइनें कही थीं, जो उनकी नीतियों पर सटीक बैठीं। उनके कार्यकाल के बाद भी उनकी नीतियों और फैसलों की चर्चा वैश्विक स्तर पर रही।