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इतिहास का सबसे दर्दनाक हवाई हादसा, जब 213 जिंदगियां अरब सागर में समा गईं

सम्राट अशोक विमान हादसा भारतीय विमानन इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक है। यह हादसा 1 जनवरी 1978 को हुआ, जब एयर इंडिया फ्लाइट 855, जिसे "सम्राट अशोक" के नाम से जाना जाता था, मुंबई से दुबई के लिए रवाना हुई थी। विमान में 190 यात्री और 23 चालक दल के सदस्य सवार थे।
इतिहास का सबसे दर्दनाक हवाई हादसा, जब 213 जिंदगियां अरब सागर में समा गईं
हवाई दुर्घटनाएं अक्सर तकनीकी खामियों, मानव त्रुटियों या अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण होती हैं। लेकिन कुछ हादसे ऐसे होते हैं जो इतिहास में गहराई तक दर्ज हो जाते हैं। भारत के इतिहास में ऐसा ही एक हृदयविदारक हादसा 1 जनवरी 1978 को हुआ, जब एयर इंडिया फ्लाइट 855, जो बोइंग 747-237B मॉडल का विमान था, अरब सागर में गिर गया। यह दुर्घटना देश और दुनिया के लिए एक बड़ा झटका थी।
मुंबई से दुबई के लिए उड़ान
यह फ्लाइट मुंबई (तत्कालीन बंबई) के सांताक्रूज एयरपोर्ट से दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई थी। यह विमान भारत का गौरव माना जाता था और इसे "सम्राट अशोक" नाम दिया गया था। विमान में 190 यात्री और 23 चालक दल के सदस्य सवार थे। कैप्टन मदन लाल कुकर, जो उस समय 51 वर्ष के अनुभवी पायलट थे, विमान का संचालन कर रहे थे। फ्लाइट ने निर्धारित समय पर उड़ान भरी। शुरुआती कुछ सेकंड तक सब कुछ सामान्य था। लेकिन उड़ान भरने के 101 सेकंड बाद विमान ने अचानक बाईं ओर लुढ़कना शुरू कर दिया। यह गिरावट इतनी तीव्र थी कि विमान को संभालने का प्रयास विफल रहा, और देखते ही देखते यह अरब सागर में समा गया।

जांच के दौरान पता चला कि हादसे की मुख्य वजह इंसानी त्रुटि थी। कैप्टन मदन लाल कुकर को विमान की ऊंचाई और दिशा का सही अंदाजा नहीं लग पाया। ऐसा माना गया कि उनकी "Spatial Disorientation" यानी अंतरिक्षीय भटकाव (जहां पायलट को ऊंचाई और स्थिति का आभास सही से नहीं हो पाता) के कारण यह घटना घटी। इसके अलावा, यह भी सामने आया कि विमान के प्रमुख उपकरणों में से एक, Artificial Horizon Indicator (जो विमान की दिशा और संतुलन दिखाता है), खराब हो गया था। इस तकनीकी खराबी ने पायलट के भ्रम को और बढ़ा दिया।
कौन थे इस फ्लाइट के चालक दल?
कैप्टन मदन लाल कुकर, 51 वर्ष के अनुभवी पायलट, जिन्होंने भारतीय वायुसेना में भी अपनी सेवाएं दी थीं। फर्स्ट ऑफिसर इंदु विरमानी 43 वर्षीय अधिकारी, जो भारत की महिला पायलटों में अग्रणी थीं। 53 वर्षीय कनविन्द्र सहगल, जो तकनीकी दृष्टि से विमान की निगरानी कर रहे थे। यह टीम बेहद अनुभवी थी, लेकिन हादसे की भयावहता ने उनकी विशेषज्ञता को भी बेअसर कर दिया।

विमान हादसे में सवार सभी 213 लोग मारे गए। यह घटना इतनी तेज थी कि बचाव कार्य शुरू होने से पहले ही सब कुछ खत्म हो चुका था। इस त्रासदी ने एयर इंडिया और विमानन क्षेत्र को एक बड़ा झटका दिया। घटना के बाद भारतीय विमानन प्राधिकरण ने गहन जांच की। रिपोर्ट में पायलट की गलती और तकनीकी खामी को हादसे की मुख्य वजह बताया गया। इसके बाद कई सुधार किए गए, जैसे पायलटों के लिए Spatial Disorientation से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण। विमानों में अतिरिक्त बैकअप उपकरण और ऑटोमैटिक बैलेंसिंग सिस्टम की अनिवार्यता। यह हादसा न केवल उन परिवारों के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी था, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी भी थी। इस घटना ने लोगों को हवाई यात्रा की सुरक्षा और तकनीकी सावधानियों के महत्व पर सोचने के लिए मजबूर किया।

1 जनवरी 1978 का यह दिन भारतीय विमानन इतिहास का सबसे काला दिन था। इसने यह सिखाया कि तकनीकी विकास के साथ-साथ मानवीय त्रुटियों को नियंत्रित करना भी बेहद जरूरी है। सम्राट अशोक विमान हादसे की कहानी न केवल विमानन क्षेत्र के लिए बल्कि आम जनता के लिए भी एक सबक है कि हर कदम पर सावधानी और सतर्कता जरूरी है।
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